
“चांदनी से बदन झूलसता है”
(संभल) बहजोई। सृजन साहित्यिक अभिरुचि मंच के तत्वावधान में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। कृष्णा कुंज स्थित कार्यालय पर आयोजित गोष्ठी में कवियों ने बेहतरीन रचनाएं सुनाकर खूब वाह वही लूटी।
कवि ज्ञान प्रकाश राही ने वाणी वंदना की। इससे पहले नवीन सदस्य डॉ संदीप सचेत एवं मनीषा गौतम ने मां शारदे के सम्मुख दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
सम्भल से आए संदीप कुमार सचेत ने पढ़ा-
पतझड़ के बाद मधुमास आया है।
कलियों पर जैसे नया उल्लास आया है।
सुगंध से भर गई शाखाएं उपवन की
लगता है कोई मिलने मेरे पास आया है।
स्थानीय कवि दीपक गोस्वामी चिराग ने एक गीत कुछ इस तरह गुनगुनाया-
मैं हूं एक डगर का पत्थर…
सबने मुझे प्रहार दिया।
कदम कदम पर छला गया मैं, नहीं किसी ने प्यार दिया।
युवा शायर अरशद रसूल बदायूंनी ने पढ़ा-
दिल को पत्थर बना लिया मैंने।
टूटने से बचा लिया मैंने।
चांदनी से बदन झुलसता है।
धूप से दिल लगा लिया मैंने।
पवांसा के ओज कवि ज्ञान प्रकाश उपाध्याय राही ने अपनी भावनाएं कुछ इस तरह व्यक्त की-
नाम अमर होता है उसका जन-जन शीश नवाता है ।
जिसने पावन माटी पर सर अर्पण करना सीख लिया।
बहजोई के युवा कवि वेंकट कुमार ने कुछ यूं कहा-
आता बहुत याद वो नीम का पेड़।
हुई बीती बात वो नीम का पेड़।
कासगंज की युवा सुनीता शंकवार ने अपने जज्बात कुछ इस तरह बयां किए-
चेहरे पे चेहरा लगा के मिलते हैं लोग।
प्यार गहरा जता के मिलते हैं लोग।
चन्दौसी की युवा कवयित्री मनीषा गौतम ने अपनी भावनाएं यूं व्यक्त की
जिनका अक्स आंखों से नहीं उतरता।
वहीं आंखों में बेहिसाब पानी दे जाते हैं।
अंत में सृजन के अध्यक्ष दीपक गोस्वामी चिराग ने सभी का आभार व्यक्त किया।
शकील भारती संवाददाता