उर्स ए फरीदी पर शानदार तरही मुशायरा, शायरों ने पेश किए उम्दा कलाम

बदायूं। हर साल की तरह इस वर्ष भी बाबा फरीद के पोते, क़ुत्बे बदायूं हज़रत मुफ्ती शाह मोहम्मद इब्राहिम फरीदी (रह.) का दो रोज़ा सालाना उर्स ए फरीदी अकीदत व एहतराम के साथ मनाया गया। उर्स का आगाज़ सुबह बाद नमाजे फज्र कुरआन ख्वानी से हुआ। दोपहर में 11वीं शरीफ की न्याज़ के बाद शाम 4:00 बजे चादर शरीफ का जुलूस मोहल्ला कामांगरान स्थित खानकाहे फरीदिया से दरगाह तक निकाला गया, जिसमें अकीदतमंदों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

बाद नमाजे इशा साहिबे सज्जादा हज़रत मोहम्मद अनवर अली फरीदी (सुहैल फरीदी) साहब की सदारत में महफ़िल-ए-मिलाद का आयोजन किया गया, जिसके बाद एक शानदार तरही मुशायरा हुआ। इस मुशायरे में जनपद, गैर जनपद और गैर प्रांत के मशहूर शोअरा ने नात और मनकबत पेश कर समां बांध दिया।

शायरों के उम्दा अशआर

सज्जादा नशीन हज़रत मोहम्मद अनवर अली सुहैल फरीदी ने फरमाया—
“उनके शैदा की अजाब शान है रब शाहिद है,
हाथ मिट्टी को लगा दे तो वह सोना हो जाए।”

डॉ. मुजाहिद नाज़ बदायूंनी ने कहा—
“जीते जी मुझसे कोई काम तो ऐसा हो जाए,
हश्र में जो मेरी बख्शिश का ज़रिया हो जाए।”

अहमद अमजदी ने पढ़ा—
“वह अगर चाहे तो दीदार-ए-मदीना हो जाए,
बैठे-बैठे ही यहीं मुझको नज़ारा हो जाए।”

शम्स मुजाहिदी बदायूंनी ने कहा—
“मूंह दिखाने का सरे हश्र बहाना हो जाए,
सिर्फ इक बार मदीना मेरा जाना हो जाए।”

ई० वारिस रफी ने पढ़ा—
“ऐ खुदा तेरा अगर अदना इशारा हो जाए,
परचमे दीने मोहम्मद यहां ऊंचा हो जाए।”

मीरानपुर कटरा के मु० सलीम खां सलीम ने सुनाया—
“एक पल में ही इलाजे गमे दुनिया हो जाए,
जिस पे पड़ जाए नज़र उनकी वो अच्छा हो जाए।”

शहज़ादे सुहैब फरीदी ने पढ़ा—
“मेरे मौला कभी ऐसा भी करिश्मा हो जाए,
हिंद में बैठें तैबा का नज़ारा हो जाए।”

दिल्ली से आए राकिम देहलवी ने कहा—
“उनके तसव्वुरात का आलम न पूछिए,
अब सारी कायनात मेरी चश्म-ए-तर में है।”

अनवर फरीदी ने कहा—
“कौन सी शय है जो इंकार करे उनके करम से,
जो भी दामन में लिपट जाए वो अपना हो जाए।”

उस्मान आबिद जलालपुरी ने पढ़ा—
“सब जानते हैं राज ये सबकी नज़र में है,
खुशबू ये किसके प्यार की दामन-ए-तर में है।”

अब्दुल जलील फरीदी ने कहा—
“काश अपना ले मुसलमां जो उसूल-ए-इस्लाम,
सबसे ऊंचा यहां इस्लाम का झंडा हो जाए।”

सऊद फरीदी ने पढ़ा—
“उनकी रहमत की नज़र हो तो मुकद्दर चमके,
बंद दरवाजा भी किस्मत का कुशादा हो जाए।”

मुशायरे में कई नामचीन शायरों ने लिया हिस्सा

इस मौके पर हाफ़िज़ मुकर्रम, सगीर सैफी, मुही बख्श क़ादरी, नईम शाहजहांपुरी, मोहम्मद हसन कादरी, हाफिज नईम, मोहम्मद तालिब, अब्दुल कयूम फरीदी, मोहम्मद नाजिम उरौलवी, मोहम्मद आतिफ, अयूब अली, मोहम्मद नईम, फैज फरीदी, आरिश फरीदी, नाजिम समेत कई अन्य शायरों ने अपने कलाम पेश किए।

मुशायरे का शानदार संचालन

इस शानदार मुशायरे की निज़ामत (संचालन) मशहूर उस्ताद शायर डॉ. मुजाहिद नाज़ क़ादरी बदायूंनी ने की।

दुआ और तबर्रुक तकसीम

 मुशायरे के आखिर में सलातो सलाम के बाद मुल्क व कौम की तरक्की और खुशहाली के लिए रूहानी दुआ की गई और सभी हाज़रीन को तबर्रुक तकसीम किया गया।

 

शकील भारती  संवाददाता

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