बदायूँ 12 जनवरी। प्रांतीय आवाहन पर जिला कांग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक विभाग के चेयरमैन हाजी नुसरत अली के नेतृत्व में मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी बदायूं को दिया गया जिसमें मुख्य न्यायाधीश द्वारा अपनी आस्था का सार्वजनिक प्रदर्शन कर नई परंपरा डाले जाने और गलत तथ्यों से उसे उचित ठहराने के संदर्भ में।
7 जनवरी 2024 को इंडियन एक्सप्रेस में गुजरात के सोमनाथ और द्वारिकाधीश मन्दिरों में आप द्वार अपनी आस्था के सार्वजनिक प्रर्दशन की खबर प्रकाशित हुई है। आपको अखबार ने उद्धरित करते हुए आपकी टिप्पणी छापी है कि
“आप महात्मा गॉंधी के जीवन और मूल्यों से प्रभावित होकर
न्यायपालिका के सामने पेश चुनौतियों को समझने और उनके हल ढूंढने के लिए विभिन्न राज्यों में घूम रहे हैं।”
हम आपके इस तर्क से इस बुनियाद पर असहमति जताते हैं कि ज्ञात इतिहास के अनुसार दक्षिण अफ्रीका से भारत आने पर गांधी जी ने पूरे देश का भ्रमण कर समाज को समझने की कोशिश ज़रूर की थी लेकिन वो सार्वजनिक तौर पर किसी मंदिर में नहीं गए थे, सिवाए मदुरई के मीनाक्षी मंदिर के और वो भी 1946 में जब मंदिर प्रशासन ने दलितों को प्रवेश की अनुमति दे दी थी।
निसंदेह गांधी जी एक आस्थावान हिंदू थे लेकिन उनकी पूजाशैली सर्वधर्म प्रार्थना की हुआ करती थी। इस प्रार्थनाशैली से उन्होने सार्वजनिक जीवन में यह संदेश दिया था कि देश पर सभी आस्थाओं के लोगों का बराबर का हक़ है। क्या सेक्युलर राज्य के मुख्य न्यायाधीश जैसे संवैधानिक पद पर रहते हुए आपका यह आचरण आप द्वारा उद्धृत किए गए गांधी के जीवन और मूल्यों के अनुरूप है?
निश्चित तौर पर आपने गांधी जी की हत्या की जांच के लिए गठित कपूर कमीशन की रिपोर्ट, गोडसे के बयानों और गांधी जी की हत्या से ठीक पहले हिंदू महासभा के लोगों द्वारा उनके खिलाफ़ इसलिए विरोध प्रदर्शन करने के बारे में जरूर पढ़ा होगा कि वो गांधी द्वारा अपने प्रिय भजन में ईश्वर और अल्लाह का नाम एक साथ लेने से नाराज़ थे। गांधी के विचारों में हमेशा हिंदू मूल्य दूसरे धर्मों के मूल्यों के समान थे। उनका वजूद एक दूसरे से जुड़ा था। क्या भारत के मुख्य न्यायाधीश के बतौर आपके द्वारा एक आस्था के साथ खड़े होना और गलत तरीके से गांधी को उद्धरित करना उचित है? फिर भी, एक नागरिक के बतौर आपके मंदिर जाने से किसी को ऐतराज नहीं है, (हालांकि आपसे पहले किसी भी मुख्य न्यायाधीश ने अपनी आस्था को सार्वजनिक प्रदर्शन की चीज़ नहीं बनाया था) ऐतराज़ है गांधी जी को गलत तरीके से उद्धरित करने से।
इंडियन एक्सप्रेस की उस खबर में आपके कुछ अन्य कोट भी हैं जो ऐतिहासिक तथ्यों से मेल नहीं खाते।
“सोमनाथ और द्वारिका मंदिरों पर फहराते धर्म ध्वजा पर उन्होंने कहा कि वो आज सुबह इससे बहुत प्रभावित हुए और ऐसी ही ध्वजा उन्होंने जगन्नाथ पुरी में भी देखी है। हमारे देश की परंपरा की सार्वभौमिकता को देखिए जो हम सबको एक सूत्र में बांधता है। इस ध्वज का विशेष अर्थ है।
बदायूं से सोहेल हमजा की रिपोर्ट