डूब कर मुझको ये हुआ एहसास- उसकी आंखें नहीं समंदर था:- अहमद अमजदी

बदायूॅं। 6 जनवरी 2025। सम्राट अशोक नगर में मुकेश बाबू के निवास पर कारवान-ए-अमज़द अकादमी के तत्वावधान मे कवि सम्मेलन व मुशायरे का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता बदायूॅं जनपद के मशहूर उस्ताद शाइर अहमद अमजदी ‘बदायूॅंनी’ ने की। मुख्य अतिथि चंद्र पाल सिंह ‘सरल’ व विशिष्ट अतिथि सिकंद्राराऊ से पधारे महेश यादव ‘संघर्षी व संचालन आतिश सोलंकी कासगंजवी ने किया। दीप प्रज्वलित होने के बाद सरस्वती वंदना संस्था सचिव व कार्यक्रम आयोजक राजवीर सिंह ‘तरंग’ के द्वारा तथा नाते पाक संस्था अध्यक्ष अहमद अमजदी ‘बदायूॅंनी’ ने प्रस्तुत की।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अहमद अमजदी ने कहा- औज पर मेरा जब मुकद्दर था,
मैं भी उस दौर का सिकंदर था,
डूब कर मुझको ये हुआ एहसास-
उसकी आंखें नहीं समंदर था

चंद्रपाल सिंह ‘सरल’ ने कहा –
आ गए मेहमान घर में क्या करें।
सारी दिनचर्या आधार में क्या करें।
गाॅंव होता तब तो हो जाता ‘सरल’,
एक कमरा है शहर में क्या करें।

कार्यक्रम संयोजक राजवीर सिंह ‘तरंग’ ने भगवान बुद्ध को समर्पित गीत प्रस्तुत किया –
आ गया हूं तथागत के चरणों में मैं, अब कहीं और जाना नहीं चाहता।
मिल गईं है मुझे ज्ञान की रोशनी, और कुछ भी मैं पाना नहीं चाहता।।

सादिक अलापुरी ने कुछ यूॅं कहा-
किसी दिन तुम को पछताना पडेगा,
अगर सब पर भरोसा कर लिया है |
जो मेरी ऐब बीनी कर रहे हैं,
उन्होंने साफ चेहरा कर लिया है।

डा. अरविंद ‘धवल’ ने नववर्ष पर शुभकामनाएं देते हुए कहा –
नए साल तू हर चूल्हे को भरा भगौना दे जाना।
अगर बहुत मजबूरी हो तो आधा पौना दे जाना।
गर्भ में पलती हुई फूल सी बेटी के हत्यारे को,
जन्म-जन्म तक ठीक न हो वह कोढ़ घिनौना दे जाना।

सिकंद्राराऊ से पधारे महेश यादव ‘संघर्षी ने मां पर रचना प्रस्तुत करते हुए कहा –
होता बटवारा भाई का भाई से जब,
भाग्यशाली के हिस्से में आती है माँ….

शम्स मुजाहिदी बदायूँनी ने कहा-
रूए जमीले यार इक ऐसी किताब है।
जिसमें मिरी वफाओं का लिखा हिसाब है।
कुछ भी नहीं बिगाड़ सके उसका दोस्तों,
काँटों के बीच देखिये तन्हा गुलाब है।

आतिश सोलंकी कासगंजवी ने कहा –
राम के नाम वाले हैं, अली की आन वाले है।
हमीं से है जहां रोशन हम ईमान वाले है।
हमें तुम क्या समझते हो जहर के घोलने वालों,
अरे हम गीता समझते हैं हम कुरआन वाले हैं।

कवियत्री दीप्ति सक्सेना ‘दीप’ ने पढा-
मनोकामना के फूलों से
तुमने मन मंदिर महकाया,
जब से आँखें चार हुई हैं
जीवन है चंदन की छाया।

पवन शंखधार ने कुछ यूॅं कहा –
मूरख से मत बहस कर, अपना आपा खोय।
मूरख तो मूरख हुआ, तू क्यों मूरख होय।।

बाबट से तशरीफ़ लाए अच्छन बाबू ने क़ौमी एकता पर गीत पढ़ा –
एकता का पैगाम सुना कर जाएंगे,
नफ़रत की दीवार गिरा कर जाएंगे।।

शैलेन्द्र मिश्र ‘देव’ ने कहा-
करे कोशिश अगर कोई मुसलसल दूर जाने की,
जरूरत फ़िर नहीं नजदीकियां उस से बढ़ाने की।
यकीं बेशक करो किस्से फ़रिश्तों के हकीक़त हैं,
मगर गलती नहीं करना फ़रिश्तों को बनाने की।

बदायूॅं जनपद के युवा शाइर उज्ज्वल वशिष्ठ ने कहा –
कुछ ज़ियादा रौशनी की चाह में,
बस्तियों के लोग अंधे हो गए।

षटवदन शंखधार ने कहा-
सूर तुलसी कबीरा बिहारी की है।
यह फकीरी की है राजदारी की है।
एक हिन्दी जुबां अपनी है दोस्त,
बाकी हर एक भाषा उधारी की है।

बिसौली से पधारे कवि आकाश पाठक ने पढ़ा-
आग में भी चलना है पांव भी बचाना है।
शर्त है कि ग़म में भी हमको मुस्कुराना है।

पं. अमन मयंक शर्मा नए कहा-
पश्चात्ताप किया जब मलाल आया,
माॅं के चरणों में खुद को मैं डाल आया।।

बिल्सी से आए ओजस्वी जौहरी ने यूॅं पढ़ा-
आ जाते काश आप मुलाक़ात के लिए,
रूक जाती चाँद रात एक रात के लिए।

फर्रुखाबाद में तशरीफ़ लाए अमान फर्रुखाबादी ने कहा-
परे‌शॉं दिल की गुहार सुन ले। खुदारा अब तो पुकार सुन ले।

प्रभाकर सक्सेना ने कहा-
आज अपने कहाँ ,अपनों से बात करते है।
कॉल थी बन्द अब ,मिस्ड कॉल भी न करते है।।
पहले तो बंद किया ,आना ईद-होली पर।
मौत पर अब तो बस ,{R.I.P} लिख के भेजा करते है।।

ललितेश कुमार ‘ललित’ ने कहा-
एसी नहीं चलाते फिर भी हम तो शीतल रहते हैं
फिल्टर का पानी नहीं पीते मटके का जल पीते हैं।
एक बार आ करके देखो क्या क्या होता गांव में।।

उझानी से पधारे कवि सुशील त्रिवेदी ‘अनुज’ ने कहा-
मैं इंसान पुराना हूॅं, अपने ख्यालों की बात बताता हूॅं। दुख दर्द सह लूॅं पर किसी को नहीं सताता हूॅं।
देर रात तक चलने वाले इस मुशायरे व कवि सम्मेलन में मुकेश बाबू, आकाश बाबू, विकास बाबू, राम रहीस, ओम प्रकाश, मोहित, वीर बाबू, विनय बाबू, पारस , कनिष्का, निशा देवी, मुन्नी, रघुवीर सरन, कन्हई लाल आदि श्रोताओं ने कविताओं व ग़ज़लों का भरपूर आनंद लिया।

 शकील भारती संवाददाता

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