नेपाल की एक मस्जिद के विवाद में नेपाली कोर्ट ने मांगा था बरेली मरकज़ से फतवा

मरकज़े अहले सुन्नत के फतवे को आधार बनाकर नेपाल की कोर्ट ने निपटाया मस्जिद का विवाद

बरेली ।खानकाह-ए- रज़विया दरगाह आला-हज़रत को पूरे विश्व के सुन्नी-सूफी खानकाही विचारधारा रखने वाले मुसलमानों का केन्द्र है ।  इसी वजह से पूरे विश्व के सुन्नी मुसलमान अपने विशेष और अहम धार्मिक मामलों और विवादों का हल फतवे के द्वारा कराते हैं। नेपाल देश के सुन्नी मुसलमानों की धार्मिक आस्था भारतीय खानकाहों, भारतीय सूफी-संतों विशेषकर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान बरेलवी और उनके परिवार तथा उनकी खानकाहे रज़विया से धार्मिक आस्था का बहुत अटूट संबन्ध रहा है। नेपाल देश के सुन्नी मुसलमान भी अपने धार्मिक फैसलों के लिए दरगाहे आलाहज़रत पर आते रहते हैं। इसी परिपेक्ष में नेपाल देश की एक मस्दिज का आपसी विवाद दरगाहे आलाहज़रत मंज़रे इस्लाम दारूल इफ्ता में पहुँचा।

दरगाह के मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि नेपाल के जनपद बांके के परस्पुर में स्थित ‘‘शहादत मस्जिद’’ नामी एक मस्जिद के लिए 60-70 वर्ष पूर्व एक व्यक्ति ने अपनी भूमि वक्फ की थी जिस पर मस्जिद का निर्माण भी हो गया था और तभी से उक्त मस्जिद में नमाज़े भी सभी लोग पढ़ते थे इधर चंद महीनों से उस व्यक्ति के प्रपौत्र ने यह दावा कर दिया कि उक्त मस्जिद हमारी निजि संपत्ती है। हम जिसे चाहेंगे उसे नमाज़ पढ़ने की अनुमति देंगे यह विवाद जनपद बांके की कोर्ट में पहुंचा। दोनो पक्ष मुस्लिम समाज से थे और विवाद मस्जिद से संबन्धित था इसलिए कोर्ट ने कहा कि मरकज़े अहले सुन्नत दरगाहे आलाहज़रत बरेली यू0पी0 भारत से आप लोग फतवा प्राप्त करके हमारे पास आएँ। 14 फरवरी 2022 को दोनों पक्षों ने मंज़रे इस्लाम के वरिष्ठ शिक्षक मुफ्ती मोहम्मद सलीम नूरी से संपर्क स्थापित कर फतवा जारी करने की अपील की। दिनाँक 17 फरवरी को मंज़रे इस्लाम के मुफ्ती मोहम्मद अफरोज़ आलम नूरी, मुफ्ती सय्यद कफील अहमद हाशमी, मुफ्ती मोहम्मद अय्यूब खाँ नूरी और मुफ्ती मोहम्मद सलीम बरेलवी के द्वारा दरगाह प्रमुख हज़रत सुब्हानी मियाँ और सज्जादानशीन हज़रत मुफ्ती अहसन मियाँ साहब ने नेपाल के इस बहुचर्चित मस्जिद विवाद का शरई तौर पर निपटारा किया और इसी फतवे को आधार बनाकर नेपाली कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि इस्लाम में मस्जिद निजि नहीं होती, किसी भी सुन्नी मुसलमान को सुन्नी मस्जिद में नमाज़ पढ़ने से बिना किसी शरई वजह के नहीं रोका जा सकता। मस्जिद किसी की निजि संपत्ती नहीं होती। नेपाल से सुन्नी उल्मा का प्रतिनिधिमण्डल जिसमें मुफ्ती कैफुलवराह, कारी अज़मत, शकील अहमद, कलामुद्दीन, मंसूर अली, कौसर अली, मो0 आरिफ बाग़वान और मुफ्ती अनवर रज़ा सम्मिलित थे उन्होंने बरेली मरकज़ आकर दरगाह प्रमुख, सज्जादा नशीन और मरकज़ के मुफ्तियों का शुक्रिया अदा किया। तंज़ीम उल्मा ए इस्लाम के मौलाना शहाबुद्दीन रज़वी ने इस प्रतिनिधिमण्डल का स्वागत किया और आलाहज़रत की किताबें भेंट कीं।

शकील भारती ब्यूरो चीफ

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