बरेली, 18 अगस्त।
आला हज़रत फ़ाज़िले बरेलवी के 107वें उर्स-ए-रज़वी का आग़ाज़ परचमकुशाई की रस्म के साथ हुआ। दरगाह प्रमुख हज़रत मौलाना सुब्हान रज़ा ख़ान (सुब्हानी मियां) की सरपरस्ती, सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन रज़ा क़ादरी (अहसन मियां) की सदारत और सय्यद आसिफ मियां की देखरेख में उर्स की तमाम रस्में दरगाह परिसर व इस्लामिया मैदान में अदा की जा रही हैं।

रात में हुज्जातुल इस्लाम के कुल शरीफ की फातिहा और नातिया मुशायरा आयोजित किया गया, जो देर रात तक जारी रहा। इस मुशायरे में देश-विदेश के नामचीन शायरों ने मिसरा-ए-तरही “पीते हैं तेरे दर का, खाते हैं तेरे दर का” और “हम तो खुद्दार हैं, खुद्दारी है शेवाह अपना” पर अपने कलाम पेश किए। मुशायरे की निज़ामत कारी नाज़िर रज़ा बरेलवी ने की।
मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि इस्लामिया मैदान के मुख्य द्वार पर रज़वी परचम लहराते ही उर्स की औपचारिक शुरुआत हुई। परचमकुशाई की रस्म सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन मियां व सय्यद आसिफ मियां की मौजूदगी में हज़रत सुब्हानी मियां ने अदा की। फातिहा के बाद ख़ुसूसी दुआ की गई और पूरा माहौल आला हज़रत की नात व मनक़बत से गूंज उठा।
दिनभर जिलेभर से चादरपोशी के जुलूस दरगाह शरीफ पहुंचते रहे। अजमनगर, रहपुरा, ठिरिया निजावतखां, स्वाले नगर, किला, जसोली, फरीदापुर, आंवला व पुराना शहर से भारी संख्या में जायरीन शामिल हुए।
रात 10:35 बजे हुज्जातुल इस्लाम मुफ्ती हामिद रज़ा ख़ान (हामिद मियां) के कुल शरीफ की फातिहा अदा की गई। इस मौके पर मुफ़्ती सलीम नूरी ने अपने खिताब में कहा कि हुज्जातुल इस्लाम ने 1938 में ही शिक्षा और आर्थिक मज़बूती पर ज़ोर दिया था। सुन्नियत की पहचान और मुल्क में आपसी सौहार्द कायम करने में उनका योगदान अहम रहा।
आगामी कार्यक्रम (19 अगस्त, मंगलवार)
- फ़ज्र की नमाज़ के बाद : कुरानख्वानी
- सुबह 9:58 बजे : रेहाने मिल्लत का कुल शरीफ
- सुबह 10:30 बजे : मुफस्सिर-ए-आज़म का कुल शरीफ
- आपसी सौहार्द कॉन्फ्रेंस : नामूसे रिसालत, मिशन मसलक-ए-आला हज़रत, समाज सुधार, हिन्दू-मुस्लिम दूरी व सामाजिक बुराईयों पर चर्चा
- दिनभर : चादरपोशी का सिलसिला
- रात : दुनियाभर के मशहूर उलेमा की तक़रीरें
- रात 1:40 बजे : मुफ्ती-ए-आज़म-ए-हिंद का कुल शरीफ
व्यवस्था व विदेशी जायरीन
उर्स की व्यवस्था में मौलाना सय्यद शबाहत अली, मौलाना ज़िक्रउल्लाह, राशिद अली ख़ान, मौलाना अबरार उल हक, मौलाना बशीर क़ादरी समेत बड़ी तादाद में लोग दिन-रात जुटे हैं।
विदेशों से भी जायरीन बड़ी संख्या में पहुँचे हैं। मॉरिशस से मुफ़्ती नदीम मंज़री, मुफ़्ती रियाज़ुल हसन, नेपाल से मौलाना फूल मोहम्मद नेमत, साउथ अफ्रीका से मौलाना सलीम खुशतरी, दुबई, कतर और ओमान से भी उलेमा बरेली पहुँचे हैं।




शकील भारती संवाददाता