शोर तो आसमान तक पहुंचा
बदायूं। गुलजारे सुख़न साहित्यिक संस्था की ओर से मोहल्ला सोथा स्थित कार्यालय पर कौमी एकता को समर्पित मुशायरे का आयोजन किया गया। शायरों ने बेहतरीन कलाम पेश कर ऐसा समां बांधा कि देर तक महफ़िल तालियों से गूंजती रही।
कार्यक्रम का शुभारंभ कुमार आशीष ने मधुर स्वर में सरस्वती वंदना से किया। इसके बाद उन्होंने ग़ज़ल सुनाई—
“जो इश्क़-ओ-उल्फ़त में मुब्तिला है, फ़क़त मुहब्बत है उनका ईमाँ।
न वो ये जानें कि दीन क्या है, हराम क्या है, हलाल क्या है।”
डॉ. दानिश बदायूंनी ने नात-ए-रसूल पढ़ी और फिर ग़ज़ल पेश की—
“मैख़ाने में रिंद सारे देखते रह जाएंगे,
जब उठाकर जाम कोई पारसा ले जाएगा।”
ग़ज़ल के सशक्त हस्ताक्षर सुरेन्द्र नाज़ बदायूंनी ने विचार रखा—
“अगर बेइल्म हो तो डिग्रियाँ काग़ज़ के टुकड़े हैं,
अगर हैं डिग्रियाँ तो ज्ञान भी होना ज़रूरी है।”
समर बदायूंनी ने कहा—
“गुंचा-ओ-गुल कली से क्या मतलब,
तेरे होते किसी से क्या मतलब।”
सादिक़ अलापुरी ने सच्चाई का संदेश दिया—
“जब दवा मोअतबर नहीं होती,
बात भी बा असर नहीं होती।”
आजम फ़रशोरी ने ग़ज़ल में जुल्म और हालात का चित्रण किया—
“जुल्म के चेहरे में जब भी शोख़ियां देखी गईं,
दूर तक जलती हुई फिर बस्तियां देखी गईं।”
शम्स मुजाहिदी बदायूंनी ने यादों की कसक सुनाई—
“भूल जाना उसे है नामुमकिन,
मेरे बचपन की वो निशानी है।”
युवा शायर उज्ज्वल वशिष्ठ ने कड़वी सच्चाई बयान की—
“छिड़का जाता है ज़हर पौधों पर,
ये भी होता है बाग़वानी में।”



शकील भारती संवाददाता