अब वफादारी पे चर्चा मत करो, बात ये कब की पुरानी हो गई

चराग़-ए-सुख़न संस्था का मासिक तरही मुशायरा, ‘फुलवारी’ का विमोचन

बदायूं। चराग़-ए-सुख़न संस्था की ओर से आयोजित मासिक तरही मुशायरे में देर रात तक शायरों ने अपनी बेहतरीन ग़ज़लों से समां बांधे रखा। कार्यक्रम में युवा शायर अरशद रसूल के बाल दिवस पर प्रकाशित बाल कविता संग्रह ‘फुलवारी’ का विधिवत विमोचन किया गया।
विमोचन के दौरान सभी ने इस पुस्तक को बच्चों के लिए प्रेरणादायक और संस्कारप्रद बताया।

कार्यक्रम की अध्यक्षत कर रहे सालिम फ़रशोरी ने नात-ए-पाक से मुशायरे की शुरुआत की। इसके बाद मंच पर एक से बढ़कर एक कलाम पेश किए गए।

सादिक अलापुरी ने पढ़ा-
इतनी चोटें जिंदगी में खाई हैं,
मुझको हासिल सख्त जानी हो गई।

अरशद रसूल ने सामाजिक विडंबनाओं पर कहा-
अब वफादारी पे चर्चा मत करो,
बात ये कब की पुरानी हो गई।

कुमार आशीष ने तरन्नुम में अपनी ग़ज़ल सुनाई-
एक पाकीजा कहानी हो गई,
श्याम की मीरा दिवानी हो गई।
सुरेन्द्र नाज़ ने ज़िंदगी की सच्चाई यूँ बयान की-
अस्ल चेहरा सामने आ ही गया,
बर्फ पगली और पानी हो गई।

शम्स मुजाहिदी बदायूंनी ने कडवा सच बयान किया-
वक्त ने बदली है करवट इस तरह,
जो भिखारिन थी वो दानी हो गई।

आजम फरशोरी ने ग़ज़ल सुनाई-
अपनी तो यह आदत है आज़म मियाँ,
जो भी दिल में बात ठानी हो गई।

संचालन कर रहे उज्ज्वल वशिष्ठ ने कहा—
जब भी बैठा शेर कहने के लिए,
वो मेरी मिसरा-ए-सानी हो गई।

कार्यक्रम के अंत में समर बदायूंनी ने भक्ति और श्रृंगार से भरपूर रचना पेश की—
मीरा मोहन की दिवानी हो गई,
हर किसी को बदगुमानी हो गई।

मुशायरे में शहाब अली शब्बू, आहिल रसूल, शानू भाई, आतिफ खां, रजत गौड़ आदि साहित्यप्रेमी मौजूद रहे।

शकील भारती संवाददाता

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